गुरुवार, 25 अगस्त 2011
रविवार, 21 अगस्त 2011
रविवार, 7 अगस्त 2011
यादों में शुमार बेटियां
पता ही नहीं चला
कि कब हो गईं वे बड़ी
हर बीतते पल के साथ
कब शामिल हो गईं
वे हमारी आदतों में
हमारे सपनों को कब
बना लिया उन्होंने अपना
जब सो रहे होते थे हम
अपनी थकन से चूर
तब कितनी बार माथे को छूकर
जाँची हमारी तबीयत
कब चाहिए हमे क्या
कैसे याद रह जाता है उन्हें
हमने सोचा ही नहीं कभी
पर जब चली गईं वे
पराये घरों की आदतों का ध्यान रखने
तब अक्सर याद आई हैं
हमारी यादों में शुमार हो चुकीं
बेटियां.
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