मंगलवार, 5 जुलाई 2011

पैरहन ख्वाबों का...

अरसे बाद कुछ लिखा है, हालांकि खुद इस लिखे से संतुष्ट नहीं हूँ, फिर भी.....
कहते हैं न कि कुछ ना होने से, कुछ होना बेहतर है...

पैरहन ख्वाबों का तुमने ओढ़ा दिया, अच्छा किया
हमारी हकीकत ढांप दी, पर्दा दिया, अच्छा किया

हम न समझे थे कभी ख्वाबों में कैसे आखिर जिएं
तुमने हमको ये अदब सिखला दिया, अच्छा किया

हम थे बच्चे तुम थे वालिद ये तुम्हे करना ही था
जिसको बजाए जा रहे हैं, झुनझुना दिया, अच्छा किया

अच्छे बुरे के फर्क में हम नादान थे उलझे रहे
चोर सब होते हैं भाई, दिखला दिया, अच्छा किया

कुछ के लिए मजबूरी थी, कुछ के लिए औजार थी
भूख उम्दा व्यापार है, तुमने किया, अच्छा किया |