शहर में आजकल झगड़ा बड़ा है
किसी की आँख में तिनका पड़ा है
बहुत कमज़ोर आँखें हो गई हैं
अजब ये मोतिया इनमें मढ़ा है
कभी आकर हमारे पास बैठो
पसीना ये नहीं, हीरा जड़ा है
कोई कैसे उसे अब सच बताये
इदारा झूठ का जिसका खड़ा है
वही दिखता है जो वे चाहते हैं
नज़र पे उनकी इक चश्मा चढ़ा है
बटेरों की भी ये कैसी समझ है
कि अंधे हाथ में अक्सर पड़ा है
हमारी भी कहाँ सुनता है ये दिल
न जाने किस से ये रूठा पड़ा है