मंगलवार, 25 अगस्त 2009

मेरी कुदाल...

कुछ अरसा पहले बिहार-झारखण्ड में दैनिक मजदूरी पर जीवन यापन करने वाले लोगों के बीच बिताये वक्त में लिखी थीं ये पंक्तियाँ, और वहीं अपने कैमरे में संजोई हुई तस्वीरों में से एक तस्वीर के साथ ये पोस्टर तैयार किया।


मंगलवार, 11 अगस्त 2009

बातें

(१)
वे नहीं जानते
मेरे बारे में
उसके बारे में
बात कर रहे हैं लेकिन
हमारे बारे में

(2)
पूरा परिवार परेशान है
वह हिंदू है तो क्या
हमारी जात की नहीं है

(३)
उसके माता-पिता
चिंतित हैं
मैं क्यों रखता हूँ ख़याल
उसकी ज़रूरतों का

(४)
लोग परेशान हैं
जिसकी छोटी उम्र से ही
रखे थे नज़र
वो क्यों है मेरे इतने करीब
और उनकी पहुँच से दूर

(५)
सब ले रहे हैं मज़े
परिवार की प्रतिष्ठा पर
अंगुली उठाने का
कैसे चूक सकते हैं वे मौका

(६)
अपना-अपना जीवन
बेहतर बनाने की दिशा में
दोनों ने ही रखा था
कस्बे से कदम बाहर
और दोनों ही
भाग गए थे आगे-पीछे
लोगों की बातों में

(७)
मरणासन्न कर देने वाली बीमारी भी
बन गई मुसीबत उसके लिए
मेरा करीब होना तो
मंज़ूर नहीं था कतई
बातों में गर्म था
गर्भपात का चर्चा

(८)
नौकरी नहीं थी उसके पास
पढ़ाई भी चल ही रही थी
कर दी गई थी बंद
घर से दी जाने वाली आर्थिक मदद
मेरा मदद करना
जो हो सकता था लोगों की बातों में
वे मान चुके थे उसे

(९)
सब खुश हैं
वो वापस अपने घर में है
नहीं निकलती चारदीवारी के बाहर
नौकरी का तो प्रश्न ही नहीं उठता
भले ही दक्ष है
कंप्यूटर नेट्वर्किंग में
तो क्या!

(१०)
सुबह की चाय से
रात के खाने तक
अपने ही घर में बस
काम वाली बाई ही बची है
बिना वेतन के
इस पर
कोई बात नहीं करता
कोई भी

(११)
सब खुश हैं
सब सफल हैं
प्रतिबंधित है
उससे बात करना भी मेरे लिए

(१२)
सब हुआ सबकी बातों में
सब हुआ सबकी बातों से
सब खुश हैं सब हो जाने से
किसने समझा
कितना आहत हुआ सब होने से
उसका मन
मेरा मन

(१३)
अपना-अपना सबने कहा
मिलकर सबका अपना-अपना
सबका हो गया
सबका कहा सब सच माना गया
हमारा सच कुछ नहीं रहा
बावजूद इसके कि
हम दोस्त थे बहुत अच्छे
मैं करता था उसे प्रेम
पिता की तरह।

मंगलवार, 4 अगस्त 2009

लिखे बिरहमन पीली चिट्ठी...

एक अरसा पहले लिखी ग़ज़ल -

लफ्जे मोहब्बत अहले दुनिया हमने खूब उछाला है
क्या समझाएं उनको जिनका सब कुछ देखा भाला है

लिखे बिरहमन पीली चिट्ठी दो लोगों की डोर बंधी
चाँद पे पहुंचे मंगल देखा फिर भी गहरा जाला है

शिकवे गिले तो ज़ेरे लब हैं क्या कहना खामोश रहो
जिनके वादों पर है जीना उनका दिल तो काला है

दश्ते सितम में शेर तुम्हारे क्योंकर उन तक पहुंचेंगे
सबकी अपनी चारदीवारी सबका एक रिसाला है

काम तो लो कुछ धीरज से वो हैं मसरूफ तुम्हारे लिए
भूखे बच्चों की खातिर फिर कहीं पे छलका प्याला है

कड़ी धूप है चलेंगे कैसे, सोच के बस घर ही में रहे
कमरे में ही चल-चलकर अब पका पाँव का छाला है

साहिल तुम हो फक्कड़ ठहरे क्या जानो तुम इनका राज़
रुतबा, शोहरत, पहचानों का कैसा गड़बड़-झाला है