(१)
वे नहीं जानते
मेरे बारे में
उसके बारे में
बात कर रहे हैं लेकिन
हमारे बारे में
(2)
पूरा परिवार परेशान है
वह हिंदू है तो क्या
हमारी जात की नहीं है
(३)
उसके माता-पिता
चिंतित हैं
मैं क्यों रखता हूँ ख़याल
उसकी ज़रूरतों का
(४)
लोग परेशान हैं
जिसकी छोटी उम्र से ही
रखे थे नज़र
वो क्यों है मेरे इतने करीब
और उनकी पहुँच से दूर
(५)
सब ले रहे हैं मज़े
परिवार की प्रतिष्ठा पर
अंगुली उठाने का
कैसे चूक सकते हैं वे मौका
(६)
अपना-अपना जीवन
बेहतर बनाने की दिशा में
दोनों ने ही रखा था
कस्बे से कदम बाहर
और दोनों ही
भाग गए थे आगे-पीछे
लोगों की बातों में
(७)
मरणासन्न कर देने वाली बीमारी भी
बन गई मुसीबत उसके लिए
मेरा करीब होना तो
मंज़ूर नहीं था कतई
बातों में गर्म था
गर्भपात का चर्चा
(८)
नौकरी नहीं थी उसके पास
पढ़ाई भी चल ही रही थी
कर दी गई थी बंद
घर से दी जाने वाली आर्थिक मदद
मेरा मदद करना
जो हो सकता था लोगों की बातों में
वे मान चुके थे उसे
(९)
सब खुश हैं
वो वापस अपने घर में है
नहीं निकलती चारदीवारी के बाहर
नौकरी का तो प्रश्न ही नहीं उठता
भले ही दक्ष है
कंप्यूटर नेट्वर्किंग में
तो क्या!
(१०)
सुबह की चाय से
रात के खाने तक
अपने ही घर में बस
काम वाली बाई ही बची है
बिना वेतन के
इस पर
कोई बात नहीं करता
कोई भी
(११)
सब खुश हैं
सब सफल हैं
प्रतिबंधित है
उससे बात करना भी मेरे लिए
(१२)
सब हुआ सबकी बातों में
सब हुआ सबकी बातों से
सब खुश हैं सब हो जाने से
किसने समझा
कितना आहत हुआ सब होने से
उसका मन
मेरा मन
(१३)
अपना-अपना सबने कहा
मिलकर सबका अपना-अपना
सबका हो गया
सबका कहा सब सच माना गया
हमारा सच कुछ नहीं रहा
बावजूद इसके कि
हम दोस्त थे बहुत अच्छे
मैं करता था उसे प्रेम
पिता की तरह।
साहिल जी मन की किन्हीं चोट देती भावनाओं को आपने कहने की कोशिश की है ...पर भाव कहीं कहीं स्पष्ट नहीं हो पाए ...और बेहतर की उम्मीद के साथ.......!!
जवाब देंहटाएंहरकीरत जी का कहना किसी हद तक ठीक है कि कहीं-कहीं भाव स्पष्ट नही हो पाये और रही बात मन को चोट देने वाली भावनाओं की तो इनमे कुछ अपनी हैं, कुछ उन बातों से निकली हैं जो छोटे-छोटे कस्बों में आम सुनने को मिल जाती हैं, और कुछ भावनाएं वो हैं जो कस्बे में रहने वाले और इन बातों से आहत कुछ परिचितों ने मुझसे साझा कीं। मैंने उन्हें उन्ही के बयान की तरह लिखा, हालाँकि जनता हूँ कि इसे और बेहतर किया जा सकता है.
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