पता ही नहीं चला
कि कब हो गईं वे बड़ी
हर बीतते पल के साथ
कब शामिल हो गईं
वे हमारी आदतों में
हमारे सपनों को कब
बना लिया उन्होंने अपना
जब सो रहे होते थे हम
अपनी थकन से चूर
तब कितनी बार माथे को छूकर
जाँची हमारी तबीयत
कब चाहिए हमे क्या
कैसे याद रह जाता है उन्हें
हमने सोचा ही नहीं कभी
पर जब चली गईं वे
पराये घरों की आदतों का ध्यान रखने
तब अक्सर याद आई हैं
हमारी यादों में शुमार हो चुकीं
बेटियां.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें