मंगलवार, 8 जुलाई 2014

बंद दरवाज़ों के पार स्त्री


यह सब कुछ हो रहा है अभी में
वे जो कहते हैं अब नहीं है ऐसा
उन्हें चाहिए
पड़ताल करें अपने 'अब' की
झाँकें अभी की झिर्रियों से
अभी भी बंद दरवाज़ों के पार

अभी-अभी ख़त्म हुआ है
अधिकारों पर भाषण
अभी-अभी कहा गया है
लड़ो अपनी स्वतंत्रता के लिए
अभी-अभी निकली है
कई संगठनों की रैली
अभी-अभी गूँजे हैं
नारे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के

क्योंकि उसे इजाज़त नहीं है
अपने आँगन में भी खड़े होने की
इनमें से कुछ भी
नहीं पहुँचा उसके कानों तक

क्योंकि उसे इजाज़त नहीं है
एक निश्चित आवृति से ऊपर
कर सके अपनी आवाज़
नहीं पहुँचा किसी के कानों तक
उसके कंठ से निकला मूक क्रंदन

यह कहते हुए कि बस एक बार
लेने दो मुझे अपनी मर्ज़ी से साँस
बस एक बार
करने दो मुझे अपने मन का
एक चारदीवारी के भीतर
बंद दरवाज़ों के पीछे पस्त पड़ी स्त्री ने
घोंट दिया है अपना गला अभी-अभी.

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर प्रस्तुति !
    आज आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा अप्पकी रचनाओ को पढ़कर , और एक अच्छे ब्लॉग फॉलो करने का अवसर मिला !

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