गुरुवार, 22 जुलाई 2021

|| सरकार उचित कह रही है, कोई नहीं मरा ||


मैं: सरकार कह रही है कि ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा।
लल्लन मियाँ: बिल्कुल उचित कह रही है।
मैं: क्या बात कर रहे हैं!
लल्लन मियाँ: हम थोड़े ही कर रहे हैं। सरकार कर रही है।
मैं: आप सहमति तो जता रहे हैं न कि सरकार सच कह रही है।
लल्लन मियाँ: ये हमने कब कहा?
मैं: अरे! अभी तो कहा कि उचित कह रही है।
लल्लन मियाँ: हाँ कहा। लेकिन ये थोड़े ही कहा कि सच कह रही है। और वैसे भी भाई मियाँ भारत में कोई मरता नहीं है।
मैं: ये क्या झमेला है! सीधी बात कीजिए।
लल्लन मियाँ: हद्द है भाई मियाँ तुम्हारी भी। गड्ड-मड्ड ख़ुद कर रहे हो और सीधा करने को हमसे कह रहे हो. अच्छा बताओ, सच क्या होता है?
मैं: सच, सच होता है। और क्या? जो है, जैसा है, बिलकुल वैसा ही कहना सच होता है।
लल्लन मियाँ: और उचित क्या होता है?
मैं: जो ठीक हो।
लल्लन मियाँ: तो यही तो हमने कहा। देखो भाई मियाँ, सच, सच ही होता है। सब के लिए एक जैसा। ज़रूरी नहीं कि वो सबको रास आए। जैसे 'गोडसे ने गांधी की हत्या की', यह एक सच है पर सबको रास कहाँ आता है। अब उचित पर आओ। उचित वो है जो ख़ुद को ठीक लगे, जो ख़ुद को रास आए। जैसे कुछ लोगों को ये रास आता है कि 'गोडसे ने गांधी का वध किया।' पहली बात जनता के लिए सच है, दूसरी बात एक संगठन के लिए उचित।
मैं: लेकिन गांधी की मौत और गोडसे का गांधी को मारना, ये तो दोनों बातों से साबित होता है।
लल्लन मियाँ: भाई मियाँ ये ऐसा तथ्य है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। लेकिन मामला तो हत्या और वध का है। हत्या करने से आप पापी हो जाते हैं और वध करने से सामने वाला।
मैं: आप भी कहाँ की बात को कहाँ ले पहुँचे। आप तो ये बताइए कि सरकार का ये कहना कि ऑक्सिजन की कमी से कोई नहीं मरा, कहाँ से उचित हो गया? ये झूठ बोलना नहीं है क्या?
लल्लन मियाँ: यार तुम फिर उचित को सच में मिला रहे हो। सरकार जो अपने लिए उचित समझ रही है, कह रही है।
मैं: लेकिन लोगों की मौत तो हुई है न!
लल्लन मियाँ: वह तो तथ्य है। सरकार भी कब कह रही है कि मौत नहीं हुई। बस ये कह रही है कि ऑक्सिजन की कमी से कोई नहीं मरा।
मैं: ये झूठ बोलना ना हुआ?
लल्लन मियाँ: नहीं। यार तुम लोग ख़ाक पढ़े-लिखे बनते हो, न इतिहास से कुछ सीखते हो न किताबों से। सरकार ने ये किया और उसी सीख के मुताबिक़ वो बोल रही है।
मैं: मतलब?
लल्लन मियाँ: अरे भाई मियाँ, रामायण और महाभारत किताबें हैं या नहीं?
मैं: हैं।
लल्लन मियाँ: और सरकार में बैठे लोग रामायण और महाभारत को इतिहास मानते हैं कि नहीं?
मैं: मानते हैं।
लल्लन मियाँ: तो रामायण और महाभारत हुईं इतिहास की किताबें और उनसे सीखा गया कि हत्या को वध कैसे कहते हैं और सच को कैसे कहना चाहिए। महाभारत में हाथी अश्वत्थामा मारा गया था। द्रोणाचार्य को ख़बर सुनाते वक्त क्या कहा गया - 'अश्वत्थामा मारा गया।' बीच में से हाथी उड़ा दिया गया कि नहीं। ये झूठ बोलना तो न हुआ, बस सच पूरा नहीं बोला गया। संस्कारी सरकार झूठ थोड़े ही बोलती है।
मैं: लेकिन पूरी दुनिया मानती है, लोगों ने देखा है कि ऑक्सिजन न मिलने से लोग मर गए। फिर ये कैसे कहा जा सकता है कि ऑक्सिजन की कमी से कोई नहीं मरा।
लल्लन मियाँ: सरकार ये मानती है कि नहीं कि बहुत से लोग कुपोषित हैं, बहुत लोग भूखे हैं।
मैं: मानती है।
लल्लन मियाँ: पर ये मानती है कभी कि भूख से किसी की मौत हुई? नहीं मानती न। भूख से आदमी का शरीर कमजोर हो जाता है, उसे बीमारियाँ घेर लेती हैं और उनसे वो मर जाता है. डॉक्टर जाँच करके लिख देता है कि फ़लाँ बीमारी से वो मर गया। भाई मियाँ, आदमी आयरन - कैल्सीयम की कमी से मर सकता है पर भूख से नहीं।
मैं: लेकिन ऑक्सिजन....
लल्लन मियाँ: अरे छोड़ो भी... ऑक्सिजन का काम क्या है? यही न कि उससे आदमी साँस लेता रहता है। तुमको ऑक्सिजन कैसे मिलती है? इसलिए कि तुम्हारे फेफड़े काम कर रहे हैं। अब बताओ अगर तुम्हारे फेफड़े काम करना बंद कर दें तो तुम ऑक्सिजन ले पाओगे? ज़िंदा रह पाओगे?
मैं: नहीं।
लल्लन मियाँ: तो भाई मियाँ, असल काम तो फेफड़ों का हुआ न! लोगों के फेफड़ों ने कोरोना और निमोनिया की वजह से ऑक्सिजन लेना बंद कर दिया। जैसे भूखा आदमी बीमारी से मरता है वैसे ही ये लोग भी कोरोना के कॉम्प्लिकेशन से मरे। ऑक्सिजन तो वायुमंडल में पर्याप्त है। कमी कहाँ है।
मैं: मरीज़ों को अतिरिक्त रूप से भी ऑक्सिजन दी जाती है, फेफड़ों को चालू रखने के लिए। उसकी तो कमी थी। अगर लोगों को वो अतिरिक्त ऑक्सिजन समय से मिल जाती तो वे न मरते।
लल्लन मियाँ: अगर ये बात है तब भी लोग ऑक्सिजन की कमी से नहीं मरे।
मैं: ऐसे कैसे? लोग अस्पतालों में लाइन लगाए रहे, डॉक्टर परेशान होते रहे कि ऑक्सिजन न होने से लोग मर रहे हैं और आप कह रहे हैं कि लोग नहीं मरे!
लल्लन मियाँ: यार बिना उदाहरण के तो तुम कुछ समझते ही नहीं हो। अच्छा मान लो कि तुमने ज़हर खा लिया...
मैं: मैं क्यों खाऊँ! ज़हर खाएँ मेरे दुश्मन।
लल्लन मियाँ: अमाँ मियाँ मानने में भी हुज्जत! अच्छा चलो फ़र्ज़ करो कि तुम्हारे किसी दुश्मन ने तुम्हें ज़हर खिला दिया। ये तो मान सकते हो?
मैं: चलो मान लिया।
लल्लन मियाँ: अब मामला यूँ है कि ज़हर ऐसा है जिसका तोड़ तैयार करने के लिए जिन संसाधनों की ज़रूरत है वो आसानी से केवल हम उपलब्ध करा सकते हैं, लेकिन हम ऐसा नहीं करते क्योंकि हमको अपने रूठे हुए ससुरालियों को मनाने यूपी, बंगाल या कहीं भी जाना है। अब बताओ तुम ज़हर से मरोगे या हमने ज़हर का तोड़ उपलब्ध नहीं कराया इसलिए?
मैं: ज़हर तो कारण बनेगा, असल में तो इसलिए मरूँगा क्योंकि आपने ज़हर का तोड़ उपलब्ध नहीं कराया।
लल्लन मियाँ: फिर तुम ज़हर की दवाई की कमी से तो न मरे, इसलिए मरे क्योंकि हमने...
मैं: आपका मतलब सरकार जो कह रही है वो इसलिए क्योंकि वो मानती है कि उसने...
लल्लन मियाँ: तौबा.. क्या वाहियात बात कर रहे हो मियाँ... सरकार का लॉजिक साफ़ है। ऑक्सिजन की कमी से कोई नहीं मरा, बस सब के दिल ने धड़कना बंद कर ऑक्सिजन लेने से इनकार कर दिया।
मैं: आप ऐसी बातें कर रहे हैं यक़ीन नहीं हो रहा। आप तो ऐसे न थे। बिलकुल आईटी सेल वालों की तरह कुतर्क किया है आपने।
लल्लन मियाँ: तुम और अड़ोस-पड़ोस के लोग हमें क्या बुलाते हो?
मैं: कुछ लोग लल्लन कहते हैं, मेरे जैसे लोग मौज में लल्लन मियाँ।
लल्लन मियाँ: तो भाई मियाँ पाजामा चेक करना तो बहुत दूर की चीज है, तुम्हारी मौज के चलते ही रासुका और राजद्रोह न लग जाए इसका इंतज़ाम करना पड़ेगा कि नहीं। समझे।
मैं: वो तो समझा, पर बातचीत की शुरुआत में आपने कहा था कि भारत में कोई मरता नहीं, इसका क्या मतलब हुआ?
लल्लन मियाँ: असल बात ये है कि भारतवर्ष में आज तक किसी भी वजह से कोई मरा ही नहीं है। तैतीस करोड़ प्लस आठ-दस न्यूली ऐडेड देवी-देवताओं की पुण्यभूमि में कोई मरता नहीं। मरता तो वो है जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं बचता। मरे हुए लोग कुछ नहीं कर सकते। पर यहाँ तो आत्मा शरीर को त्याग कर स्वर्ग में वास करती है, पितर श्राद्ध में भोजन तक जीमते हैं और जो नहीं जीमते वे असल में सब मोक्ष को प्राप्त भये। यही हमारी सनातन संस्कृति है।
ध्यान रहे सरकार झूठ नहीं बोल रही है, उचित ही कह रही है कि ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा। मर ही नहीं सकता। जो भी झूठ-झूठ चिल्ला रहे हैं, सब विधर्मी लोग हैं।

-रजनीश साहिल.