न हमने ही कोई बात की, न उसने ही हाल-ए-दिल कहा
खामोशी का एक तार था, जो दरमियाँ बजता रहा
कुछ लफ्ज़ थे जो कहे नहीं, सुने मगर फिर भी गए
चुपचाप लब, पर सरगोशियों का सिलसिला चलता रहा
इक शिकायत उसे रही, मैं दिखा नहीं हँसते हुए
वो ही तो था मेरा आइना, जैसा मैं था दिखता रहा
लिखूं जो उसको ख़त कभी, लिखूंगा क्या उलझन में हूँ
वो इतना मेरे करीब है, हर बात तो कहता रहा
अपनी ख़ामोशी से तू यूँ ही, लेना साहिल हौसला
मौज-ए-दरिया सा जहां, उठता रहा गिरता रहा.
खामोशी का एक तार था, जो दरमियाँ बजता रहा
कुछ लफ्ज़ थे जो कहे नहीं, सुने मगर फिर भी गए
चुपचाप लब, पर सरगोशियों का सिलसिला चलता रहा
इक शिकायत उसे रही, मैं दिखा नहीं हँसते हुए
वो ही तो था मेरा आइना, जैसा मैं था दिखता रहा
लिखूं जो उसको ख़त कभी, लिखूंगा क्या उलझन में हूँ
वो इतना मेरे करीब है, हर बात तो कहता रहा
अपनी ख़ामोशी से तू यूँ ही, लेना साहिल हौसला
मौज-ए-दरिया सा जहां, उठता रहा गिरता रहा.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें