मंगलवार, 18 जून 2013

आडवाणी, मोदी और किसान


इन दिनों भारतीय जनता पार्टी सुर्खियों में है। कारण रहे लालकृष्ण आडवाणी, नरेन्द्र मोदी और बिहार। न्यूज चैनलों, न्यूज पोर्टलों यहां तक कि सोशल मीडिया में भी इस समय अगर चर्चा का कोई केन्द्र है तो बस बीजेपी। एक अरसे तक पार्टी के मास्टर माइंड रहे आडवाणी की अपनी ही पार्टी में ‘घर के रहे न घाट के’ जैसी स्थिति हो जाना निश्चित ही राजनीति के विश्लेषकों और मीडिया के लिए बड़ी ख़बर थी। इसलिए और भी क्योंकि आगामी समय में उनकी जगह नरेंद्र मोदी के बैठे दिखाई देने के आसार नज़र आ रहे हैं। यानी सारथी रथी बनने की ओर अग्रसर है और जो कभी रथी था वह बस टुकुर-टुकुर देखेगा। आडवाणी की इस स्थिति पर टिप्पणी करने वाले कई लोगों का अनुमान है कि अब शायद आडवाणी उस वक्त को याद कर रहे होंगे जब वे नरेन्द्र मोदी की पीठ थपथपा रहे थे। बहुत संभव है कि आडवाणी अपनी गलतियों के लिए भीतर ही भीतर ग्लानि भी अनुभव कर रहे हों।

यहां ‘बोया पेड़ बबूल का तो फूल कहां से पाय’ की कहावत का उपयोग उचित ही होगा। आडवाणी की राजनीति की फसल जिस मौकापरस्ती की जमीन पर लहलहाई उसमें हिन्दुत्व, राष्ट्रवाद, साम्प्रदायिकता और दंगों पर अपना विकास करने के बीज उन्होंने ही तो बोए थे, जिसकी फसल पहले वे खुद काटते रहे और अब खाद-पानी देकर मोदी काट रहे हैं। यह और बात है कि मोदी ने वक्त की नजाकत समझते हुए इसमें कुछ दूसरी किस्म के बीज भी डाल दिए हैं। बाबरी मस्जिद की घटना से पहले क्या आडवाणी का कद इतना बड़ा था? राम मन्दिर के मुद्दे पर उन्होंने अपनी रोटियां सेंकीं। गुजरात के दंगे के बाद नरेन्द्र मोदी पार्टी के नेशनल हीरो बन गए और अब वे अपनी रोटियां सेंक रहे हैं। तो इस मौकापरस्ती के खेल में अगर मोदी आडवाणी को किनारे कर आगे बढ़ रहे हैं तो यह कोई अचरज की बात नहीं होनी चाहिए।

हालिया घटना बिहार में बीजेपी-जेडीयू की तकरार है। मोटे तौर पर यह ‘गुड़ से यारी, गुलगुलों से परहेज’ की तरह है, जिसमें आडवाणी गुड़ हैं तो मोदी गुलगुला। लेकिन गौर से देखें तो जिस तरह मोदी भाजपा समर्थक क्षेत्रों में सब पर हावी होते जा रहे हैं, उसके मद्देनजर यह वर्चस्व की लड़ाई ज़्यादा नज़र आती है। हाल ही में हुई सिर-फुटौवल शायद इसी ओर इशारा भी कर रही है। बहरहाल एक तरफ आडवाणी, बीजेपी-जेडीयू वाली उठापटक है और दूसरी तरफ नरेन्द्र मोदी की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी। जहां-जहां भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियां हैं, वे गुजरात के विकास के कसीदे पढ़ते नहीं थकते। यह स्पष्ट है कि आगामी चुनावों के लिहाज से मोदी हर तरह से अपने कद को और ऊँचा दिखाने की जुगत में लगे हुए हैं और इसके लिए वे अपने ‘तथाकथित विकास’ को आधार बना रहे हैं। इसी क्रम में हाल ही में सरदार वल्लभ भाई पटेल की 392 फुट ऊंची प्रतिमा के निर्माण की घोषणा के साथ मोदी ने खुद को किसानों का हितैषी दर्शाने की कोशिश भी की है, जो कि मोदी की अवसरवादिता का एक और नमूना है।

गौरतलब है कि इस प्रतिमा के निर्माण के लिए उन्होंने देश के सभी किसानों से लोहे की मांग की है। असल में तो यह राजनीति का एक हथकंडा ही है जिसके सहारे वे देश के उन किसानों के बीच अपनी जगह बनाना चाहते हैं, जिनकी बदहाली का जिम्मा अकेले केन्द्र के सिर पर मढ़़ दिया जाता है। जबकि हकीकत यह है कि किसानों की बदहाली के लिए जितनी जिम्मेदार केन्द्र सरकार है, उतनी ही राज्य सरकारें भी। शायद मोदी यह भूल गए हैं कि उनके अपने राज्य गुजरात में किसान उनसे खुश नहीं हैं।

गुजरात के विकास का ढिंढोरा पीटने वाले मोदी के लिए उनकी सरकार द्वारा किया गया भूमि अधिग्रहण मुसीबत बना ही हुआ है। स्पेशल इन्वेस्टमेंट रीजन के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे भूमि अधिग्रहण के खिलाफ गुजरात के चार जिलों के 35 गांवों ने आंदोलन छेड़ रखा है। इस हद तक कि दीवारों पर दर्ज अक्षरों और चस्पां पोस्टरों में सरकारी अधिकारियों और उद्योगपतियों को स्पष्ट चेताया गया है कि वे जमीन अधिग्रहण के मामले में गांव में कदम न रखें अन्यथा उन्हें इसकी कीमत चुकानी होगी। इसी क्षेत्र में किसानों की कई एकड़ उपयोगी जमीन को इस्तेमाल में न आने वाली जमीन बताकर मारुति को दे देने के कारण किसान पहले से ही मोदी सरकार के प्रति गुस्से में हैं। गुजरात के किसान स्पष्ट कहते हैं कि विकास के नाम पर जिस जमीन का अधिग्रहण किया जाता है उस पर सिर्फ उद्योगपतियों का विकास होता है।

29 मई 2013 की एक सूचना के अनुसार जनवरी 2008 से अगस्त 2012 तक गुजरात में 112 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। वजह थी सूखा, कर्ज और उसके भुगतान के लिए बैंकों का दबाव। 2005 में जिन किसानों ने फसल सुरक्षा बीमा लिया था, उन्हें सरकार से आज तक एक पैसा भी नहीं मिला है, जबकि किसानों से बीमा के पैसे वसूलने में कोई कोताही नहीं की जाती। गौरतलब है कि 2012 के शुरुआती 5 महीनों में ही 65 किसानों ने आत्महत्या की और यह सिलसिला अब भी जारी है। बावजूद इसके मोदी कृषि मेलों का आयोजन करते हैं और गुजरात में कृषि क्षेत्र की स्थिति बहुत अच्छी होने का दिखावा करते हैं। क्या इन किसानों की मौत के प्रति मोदी सरकार की कोई जवाबदेही नहीं बनती? या फिर मोदी का गुजरात और विकास केवल शहरों और उद्योगपतियों तक ही सीमित है?

मोदी देश के पांच लाख से अधिक गांवों के किसानों से स्टैचू ऑफ़ यूनिटी यानी सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा के निर्माण के लिए लोहा तो मांग रहे हैं, लेकिन शायद उन्हें पता नहीं है कि इसमें शामिल हो सकने वाले 90 लाख लोहे के टुकड़े कम हो चुके हैं और जब तक उनका यह अभियान जोर पकड़ेगा तब तक कमी की यह मात्रा और बढ़ चुकी होगी। ताजा आंकड़ों की मानें तो पिछले एक दशक में देश में 90 लाख किसानों ने कृषि से किनारा कर लिया है और खेतिहर मजदूरों की संख्या में तीन करोड़ 80 लाख की वृद्धि हुई है। लेकिन जब मोदी को अपने ही राज्य के किसानों की दुर्गति नहीं दिखाई देती तो पूरे देश के किसानों की व्यथा से उन्हें क्या लेना-देना। दूसरी बात ये कि अपनी-अपनी परेशानियों में डूबे पूरे देश के किसानों को भी कहां गुजरात के किसानों की स्थिति का अंदाजा होगा। खबरों मे दिखाई देने वाले कृषि मेले बेहतरी का भ्रम फैलाते हैं। अपनी दुर्गति के लिए दोषी ठहराने हेतु किसानों का मुंह कई तरीकों से केंद्र सरकार की ओर मोड़ दिया जाता है, फिर चाहे वह मध्य प्रदेश हो, उत्तर प्रदेश हो या गुजरात। ऐसे में पूरे देश के किसानों में अपनी छवि को ऊंचा करने का अवसर मोदी भला कैसे छोड़ सकते थे, जिसका फायदा चुनावों के इस दौर में उन्हें और उनकी पार्टी को मिल सकता है। इसीलिए देश भर के किसानों से लोहे का टुकड़ा मांगकर उन्होंने मौके का फायदा उठाने की कोशिश की है।

असल में मोदी को किसानों के हालात से कोई सरोकार नहीं है, होता तो वे किसानों के हित में कोई घोषणा करते। वे तो सिर्फ किसानों के खून से लथपथ लोहे के टुकड़ों से सरदार पटेल की प्रतिमा बनवाकर एक मिसाल कायम करना चाहते हैं। दिखाना चाहते हैं कि देखो मैंने स्टैचू ऑफ़ लिबर्टी से दोगुने आकार की प्रतिमा बनवाई। इस प्रतिमा के सहारे वे खुद का कद बड़ा दिखाने के ख्वाहिशमंद हैं। वैसे यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि मोदी किसानों के लोहे की इस प्रतिमा को उसी सरदार सरोवर बांध के किनारे स्थापित करना चाहते हैं, जिसकी नींव में सैकड़ों किसानों के विस्थापन का इतिहास दफन है। शायद मोदी इस ताबूत में एक कील और ठोकना चाहते हैं।

1 टिप्पणी:

  1. सार्थक व् उपयोगी जानकारी .बहुत सही बात कही है आपने . आभार . जनता की पहली पसंद -कौंग्रेस आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

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