बुधवार, 30 अक्तूबर 2013

तात्कालिक राहत


गलती अपनी ही थी
परवाह ही न की
अब भुगतनी तो होगी ही तकलीफ़ 

हरारत महसूस होने पर हर बार
गले से उतार ली कोई क्रोसिन
टूटा शरीर, फैलने लगा दर्द तो 
गटक ली कॉम्बीफ्लेम या उबाल लिया 
देसी नुस्खा हल्दी वाला दूध
ख़ून में घुलते गए वायरस और हम
रोकते रहे शरीर का गरम होना
दबाते रहे आँखों की जलन 
मार-मार कर पानी के छींटे

मिलती रही तात्कालिक राहत
बना रहा भ्रम ठीक होने का 
कभी किया नहीं ढंग से इलाज
दोहराते रहे सावधानी ही बचाव है 
पर रखी नहीं कभी
नीम-हकीम बहुत थे हमारे आसपास
उनके पास सौ नुस्खों वाली किताब थी,
हमने छोड़ दिया उनके हवाले खुद को 
वे देते रहे हर तरह के बुखार में पेरासिटामोल

गलती अपनी ही थी
नहीं होता जब तक ढंग से इलाज
झेलनी ही होगी तकलीफ़ 
जागना ही होगा रात भर

बीमारियों ने नींद उड़ा रखी है....

कोई बताएगा
कितनी रातें नहीं सोया ये मुल्क?

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