आख़िर क्यों न कहें उन्हें धन्य
आख़िर थे ही वे इस काबिल कि
बन सके हमारे प्रतिनिधि
आख़िर कौन मिला गरीबों से
एकाध जगह की बात नहीं
गाँव - गाँव
जगह - जगह
पूरे राज्य में जाकर
आख़िर कौन मिला हम गरीबों से
जिनके डूब गए थे बाढ़ में
और जो थे गरीब बेघर
घर देने की उन्हें
बात भी तो कही उन्होंने
आख़िर उनका क्या कुसूर
अगर बाबू घूस माँगता है तो
कोई कसर तो नहीं छोड़ी उन्होंने
आख़िर किया ही है विकास
बरसात में निकलना भी दूभर होता था
उन्होंने गाँव - गाँव तक
आख़िर पहुँचा तो दी हैं सड़कें
सबूत है इस बात का
उनकी विकास-यात्रा
अब बन गईं हैं सड़कें
तो आसानी होगी
जाकर गाँव से शहर
मजदूरी तलाशने में
फूस से छप्पर तो बन जाता है
आख़िर पेट तो नहीं भरता।
bahut sundar par kisne vikash kiyaa nitishji ne?
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