दुनिया भर की बातों में अपनी सुनना सीख गया
बातों से निकली बातों को अब मैं गुनना सीख गया
अब कितने दिन रह पाएगी इस घर में वीरानी ये
मैं दीवारों की सीलन में तस्वीरें बुनना सीख गया
मेरा हक़ तो मिल जाता येन-केन-प्रकरेण मुझे
अपने जैसों की ख़ातिर मैं सिर धुनना सीख गया
उनकी नज़रों में बेशक अब भी ख़ाली हाथ सही
बेहतर दुनिया के टुकड़े पर मैं चुनना सीख गया
झूठ बोलता हूं अक्सर ताकि उनको दुःख न हो
सच के गहरे ज़ख़्मों को मैं तो सिलना सीख गया
बात मज़े की इतनी है ‘साहिल’ चुप-चुप बैठा है
ख़ामोश ज़ुबां में वो भी अब कहना-सुनना सीख गया
kya baat hai yar..kamal ki dil chhu dene wali rachna likhi hai ...
जवाब देंहटाएंDo teen bar pada to aur bhi achha laga
blondmedia.blogspot.in
हटाएंबहुत खूब....
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट 17/5/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा - 882:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
शुक्रिया दिलबाग जी।
हटाएंबहुत बेहतरीन ग़ज़ल ..वाह
जवाब देंहटाएंkya bat.....ai uttam
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