हर तरफ बर्बर शिकारी घात में, क्या करें
रास्ते पर ही चलें या ओट में, क्या करें
संवेदनाएं लुट गईं उस महजबीं के साथ कल
आज बस कुछ चीथड़े हैं हाथ में, क्या करें
इक दिन पहनकर देखिए शर्म-ओ-हया
भूलकर सारी नसीहत पूछोगे, क्या करें
न छुई उंगली भी तो क्या फ़र्क है
तन-बदन नजरों से है छलनी किया, क्या करें
दर्द कुछ ऐसा है कि किससे कहें
मरहम लगाते हाथ में भी है सुआ, क्या करें
है एक दुश्मन, दोस्त इक, इक अजनबी
सबका मक़सद एक है बस लूटना, क्या करें
जब तक सलामत वो नहीं पहुंचा उधर
इस तरफ बढ़ती रही बेज़ारगी, क्या करें
सबकी ज़ुबां पर जिक्र है, ऐसा हुआ
कोई ये कहता नहीं क्योंकर हुआ, क्या करें
बाद उसके जाने के आलम था ये
भटका किये, सोचा किये हम हर घड़ी, क्या करें
आपकी नायाब पोस्ट और लेखनी ने हिंदी अंतर्जाल को समृद्ध किया और हमने उसे सहेज़ कर , अपने बुलेटिन के पन्ने का मान बढाया उद्देश्य सिर्फ़ इतना कि पाठक मित्रों तक ज्यादा से ज्यादा पोस्टों का विस्तार हो सके और एक पोस्ट दूसरी पोस्ट से हाथ मिला सके । रविवार का साप्ताहिक महाबुलेटिन लिंक शतक एक्सप्रेस के रूप में आपके बीच आ गया है । टिप्पणी को क्लिक करके आप सीधे बुलेटिन तक पहुंच सकते हैं और अन्य सभी खूबसूरत पोस्टों के सूत्रों तक भी । बहुत बहुत शुभकामनाएं और आभार । शुक्रिया
जवाब देंहटाएंMAZA NAHI AAYA
जवाब देंहटाएंKYA KAREN