ज़िद पे अपनी वो अड़े हैं, हद्द है
हम इबादत में पड़े हैं, हद्द है
लाख समझाने की कोशिश हो चुकीं
चिकने लेकिन वो घड़े हैं, हद्द है
जिनको बहा देने थे सारे बाँध वो
अश्क़ मोती से जड़े हैं, हद्द है
बेतरह टूटे हैं कई-कई बार हम
हाँ मगर अब भी खड़े हैं, हद्द है
हाथ में है चाँद लेकिन पाँव तो
अब भी मिट्टी में गड़े हैं, हद्द है
धर्म, जाति, वर्ग और ये वोट बैंक
इन्सान के कितने धड़े हैं, हद्द है.
सुन्दर व् सार्थक अभिव्यक्ति .बधाई
जवाब देंहटाएंहर एक भावना मन को छूती हुई...बहुत सुन्दर प्रवाहमयी रचना
जवाब देंहटाएंbahut hi badhiya......had se jyada
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