मंगलवार, 6 मई 2014

तालाब ने बुलाया था


कल लल्लन मियाँ को पुलिस पकड़ कर ले गई। रात भर थाने में रखा और सुबह छोड़ दिया। वे रात को 12 बजे शहर से सटे तालाब पर अकेले भटक रहे थे, जब पुलिस ने उन्हें पकड़ा। अब पकड़ा या धर दबोचा ये तो पुलिस जाने या लल्लन मियाँ, पर किस्सा मजेदार था जो उन्होंने बताया।

लल्लन मियाँ बोले- भाई मियाँ वक़्त होगा यही कोई बारह-साढ़े बारह बजे रात का। हम तालाब के किनारे बैठे पानी में झिलमिलाती हुई शहर की बिजली वाली बत्तियों को देख रहे थे और बीच-बीच में पास पड़ा हुआ कोई कंकर उठाकर हौले से पानी में फेंक देते थे। कसम से बड़ा ही सुकून मिल रहा था। फिर देखते क्या हैं कि एक मोटरसाइकिल आकर थोड़ी दूर रुकी। दो पुलिस वाले उतरे और पास आते ही घुड़कने लगे। नाम, पता वगैरह के बाद उन्होंने पूछा, ‘यहाँ क्या कर रहे हो?’ जब हमने जवाब दिया कि तालाब ने बुलाया था, तो ऐसे देखने लगे जैसे हम कोई अजूबा हों। एक बोला - ‘अबे गाँजा पिये है क्या?’ हमने कहा, ‘नहीं भाई, बिलकुल सच, तालाब ने ही बुलाया था।’ वो बिदक गया, ‘तू ज़रूर गाँजा पिये है या फिर कोई गोली-वोली डटाए है। अबे तालाब की ज़ुबान होती है भला! वो भी कभी किसी को बुलाता है! सच-सच बता क्या करने आया है?

भाई मियाँ, हमें लगा कि कुछ नहीं बोलेंगे तो पिटेंगे, बोलने में ही भलाई है। हमने समझाने की कोशिश की। कहा कि 'भाई साहब जैसे गंगा मैया बुलाती है, वैसे ही तालाब भी बुलाता है।’ इस बार दूसरा वर्दीधारी बोला, ‘क्या बकवास करता है? और अगर इसने तुझे बुलाया तो हमें सुनाई क्यों नहीं दिया?’ हमने कहा, ‘बकवास नहीं साहब, एकदम सच। अब देखिए एक आदमी को गंगा मैया ने बुलाया और वह बेचारा गुजरात से भागता बनारस पहुँच गया। कहाँ बनारस, कहाँ गुजरात। सोचिए गंगा मैया को कितनी ताक़त लगानी पड़ी होगी, कितनी जोर से बुलाया होगा? लेकिन उस आदमी के अलावा किसी को सुनाई नहीं दिया। फिर ये तो अपने ही शहर का तालाब है, हमारे घर से ज़्यादा दूर भी नहीं है। इसे तो जोर लगाने की भी ज़रूरत नहीं पड़ी होगी, धीरे-से ही पुकारा होगा। अब जब गंगा मैया की जोर की आवाज़ किसी को सुनाई नहीं दी तो इसकी धीमी आवाज़ किसी को क्या सुनाई देती।’

दोनों पुलिस वालों की शक्ल से लग गया कि उन्हें हमारी बात का यकीन नहीं हो रहा है सो हमने कहा, ‘भाई साहब! इसमें हैरानी की क्या बात है। जब उस आदमी ने कहा कि उसे गंगा मैया ने बुलाया है तो सारे मुल्क ने यकीन कर किया। हम तो बाकी सब से कह भी नहीं रहे, बस आप दोनों से कह रहे हैं कि तालाब ने बुुलाया था तो आपको यकीन कर लेना चाहिए।’ इस पर पहले वाला फिर बिदक गया। बोला, ‘अब तू सिखाएगा हमें कि क्या करना चाहिए। पता नहीं काहे का नशा किये बैठा है और पिनक में लैक्चर पेल रहा है। स्साले दो झापड़़ पड़ेंगे तो सारा नशा हिरन हो जाएगा। बता क्या नशा किया है?’ हमने उन्हें खूब समझाया कि कोई नशा नहीं किया है, पर वे न माने।

थोड़ी देर बाद दूसरा पुलिस वाला पहले वाले से फुसफुसाकर बोला, ‘अबे चुनाव का टैम है, साला कहीं कोई वारदात-आरदात करने के इरादे से तो नहीं आया? कहीं-कुछ हो-हवा गया तो फोकट में 24 घंटे की ड्यूटी बजानी पड़ेगी।’ फिर हमसे मुखातिब होकर बोला, ‘बोल क्यों आया है यहाँ?’ हमने जबाब दिया, ‘हम खुद नहीं आए’ तो उसने दूसरा सवाल दागा, ‘फिर किसने भेजा है तुझे?’ हमने कहा, ‘हमें यहाँ किसी ने नहीं भेजा।’ वो भड़का, ‘तो फिर यहाँ कर क्या रहा है?’ हमने फिर दोहराया, ‘हमें तो तालाब ने बुलाया था।’

(कल्पतरु एक्सप्रेस, 6 मई 2014)
इस पर तो भाई मियाँ पंगा ही पड़ गया। एक पुलिस वाला दूसरे से बोला, ‘ये ऐसे नहीं मानेगा। ले चलो इसको थाने। रात भर में अकल ठिकाने आ जाएगी। कमबख़्त इतनी रात में तालाब के जीव-जन्तुओं की नींद अलग ख़राब कर रहा है।’ हमने विरोध किया, ‘अरे भाई जब गंगा मैया के बुलाने पर एक आदमी इतनी भीड़ के साथ वहाँ पहुँचा और किसी की नींद ख़राब नहीं हुई तो हम तो यहाँ अकेले आए हैं।’ 

उन्होंने एक न सुनी। सारी रात हमें थाने में रखा भाई मियाँ और सुबह हिदायत देकर छोड़ दिया कि लल्लन मियाँ रोजी-रोटी में खटने वाले आदमी हो, पुलिस और कानून की आवाज़ सुना करो। तालाब-वालाब की आवाज़ के चक्कर में न पड़ो ये सब बड़े लोगों के कारोबार हैं।

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