अभी-अभी लल्लन मियाँ
ने फ़ोन पर एक सवाल दागा - "भाई मियाँ, मान लो कि हम तुम्हें कहते हैं कि तुम ऑटो से बाज़ार जाओ-आओ और
किसी बढ़िया सी फिलम की पाइरेटेड सीडी हमारे लिए खरीदकर लाओ. इस काम के तुम्हे 500 रुपये मिलेंगे. तुम ये काम कर दो फिर पता चले कि
सीडी तो चल ही नहीं रही, तब क्या तुम हमसे
पैसे नहीं वसूलोगे?"
मैंने कहा कि फ़िल्म
चले न चले मेरी बला से, मैंने काम किया,
समय लगाया, मेहनत लगाई इसलिए बिलकुल वसूलूँगा.
उन्होंने दूसरा सवाल
दागा- "और अगर हम तुम्हे वो पैसे देकर ये कहें कि किसी को बताना मत कि हमने तुम्हे
पैसे दिए और ये काम कराया वरना घर में हमारी शामत आ जाएगी, तो तुम क्या करोगे?"
मैंने कहा कि करना
क्या है, नहीं बताऊंगा किसी को. लेकिन
इस तरह के सवाल पूछने की ज़रूरत क्या पड़ गई? वो बोले- "मामला
ये है भाई मियाँ की अब देखना कैसे फेसबुक, ट्विट्टर पर "काला धन - काला धन" का हल्ला मचेगा. लोग मुँह बाए कहेंगे
- 'सवा करोड़! हाय इत्ता पइसा!'
समझते ही नहीं कि ये सब तो मेहनत की कमाई है."
मुझे कुछ बात समझ
नहीं आई, सो पुछा किस बारे में बात
कर रहे हैं, खुलासा कीजिए ज़रा.
लल्लन मियाँ झिड़कते
हुए बोले- "तुम भी न मियाँ! बंधा नोट तुम्हारे पल्ले नहीं पड़ता. बिना चिल्लर किये
कुछ समझते ही नहीं हो. अरे मियाँ ये जो अपने नेताजी जी के यहाँ चोरी हुई है न सवा करोड़
की. उसके बारे में बात कर रहे हैं हम. लोग कह रहे हैं कि ये रकम जो है काला धन है,
और हमारा मानना है कि ये मेहनत की कमाई है."
मैंने पूछा कि कैसे,
तो बोले- "देखो भई, ये अलग बात है कि किसी को भेज नहीं पाए, पर ठेका तो लिया था न, वादा या दावा जो भी तुम कह लो वो तो किया था न. अब विरोधियों
को बॉर्डर पार कराना हँसी-खेल थोड़े ही है. नहीं करा पाए तो क्या, फिलम चली नहीं तो क्या, राष्ट्रहित में इतनी जो मेहनत की, शानदार ट्रेलर तैयार किया उसका मेहनताना भी न लें क्या?
और फिर ये तो एक काम था और भी तो न जाने किस-किस
के कितने-कितने काम कराये होंगे या राष्ट्रहित में किये होंगे."
(जनवाणी में प्रकाशित) |
फिर थोड़ी चुप्पी के
बाद बोले- "अब तुम हो सोचो, कोई भी काम करने में
मेहनत तो लगती है न. और ज्ञानी जन वैसे ही कहते हैं कि कोई काम छोटा-बड़ा नहीं होता,
काम, काम होता है. तो मियां उस आदमी ने कुछ तो छोटे-बड़े काम किये ही होंगे, वरना बिना कुछ किये तो एक धेला नहीं मिलता,
ऊपर से राष्ट्रहित को समर्पित पार्टी का नेता है
तो पक्का है कि काम राष्ट्रहित में ही किये होंगे. यह भी समझ लो कि ज़रूर ही वे ऐसे
काम होंगे जिनका उजागर होना सुरक्षा कारणों से राष्ट्रहित में नहीं होगा. इसलिए उनका
मेहनताना भी उजागर नहीं किया गया. अब तुम ही बताओ भाई मियाँ कि ये मेहनत की कमाई हुई
कि नहीं. पर लोग हैं कि समझते ही नहीं. बुड़बक कहीं के! हाँ नईं तो!"
मैंने कहा वो तो ठीक
है पर चोरी गए माल में जो यूएस डॉलर भी शामिल हैं उनका राष्ट्रहित से क्या कनेक्शन?
लल्लन मियाँ बोले-
"हद्द है मियाँ तुम्हारी भी! देख नहीं रहे हो अब सारे राष्ट्रहित के कामों में
एफडीआई है."
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