सोमवार, 6 अप्रैल 2009

यार चाँद...

कितने बदल गए हैं हालात यार चाँद
करते भी नहीं हम अब बात यार चाँद

भटके थे कितनी रातें सड़कों पे साथ-साथ
क्या फिर कभी मिलेगी वो रात यार चाँद

बसों का सफर, दफ़्तर थका देता है मुझे तो
तूने भी कोई नौकरी क्या कर ली यार चाँद

मेरे जैसे कई साथी तेरे तो और भी थे
क्या उनसे अब भी होती है बात यार चाँद

खिड़की के पार आकर मिल जा कभी मुझसे
आधी रात तक तो मैं भी जगता हूँ यार चाँद

कैसी कटीं रातें तेरी पिछले इन दिनों की
मैं बताऊँ तुझको दिन की बात यार चाँद

मैंने सुनाई थी जो एक-एक नज़्म तुझको
कुछ याद हों तो मुझको सुना जा यार चाँद

दिन का पता मुझे है रातें तेरी नज़र में
बता तो दिल्ली कैसी लगती है यार चाँद

रफ़्तार में शहर की कहीं ख़ुद को खो न बैठूं
मेरे साथ बैठ कुछ पल कर बात यार चाँद ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. खिड़की के पार आकर मिल जा कभी मुझसे
    आधी रात तक तो मैं भी जगता हूँ यार चाँद

    साहिल जी गजब ढाने लगे हैं अब तो आप....बहोत खूब....!!

    मैंने सुनाई थी जो एक-एक नज़्म तुझको
    कुछ याद हों तो मुझको सुना जा यार चाँद

    वाह...बहोत सुन्दर......!!

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  2. रफ़्तार में शहर की कहीं ख़ुद को खो न बैठूं
    मेरे साथ बैठ कुछ पल कर बात यार चाँद ।
    ghazal classic vidha hai. kam karenge to behtar hoga.

    जवाब देंहटाएं
  3. रफ़्तार में शहर की कहीं ख़ुद को खो न बैठूं
    मेरे साथ बैठ कुछ पल कर बात यार चाँद ।
    ghazal classic vidha hai. kam karenge to behtar hoga.

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