शक्ल-सूरत तो थी उसी की तरह
ये कोई और था उसी की तरह
यक़ीनन ख़्वाब था बरसों पुराना
कल बिक गया जो असली घी की तरह
ये कैसी दौड़ है कि बच्चों की
पीठ पर बोझ है कुली की तरह
करोड़ों लोग मशगूल कुछ तो हासिल हो
कोप* से निकले मुरझाये जी की तरह
इनके वादे समझना ज़रा सलीके से
आये हैं जो सावन में बैरी पी की तरह
अपने गीतों को उनकी लय पे गाओ
रोओ ऐसे कि लगता रहे हँसी की तरह.
* कोपेनहेगेन वार्ता : ७-१८ दिसम्बर २००९
ठहाके गुम अब आवाजे है मुस्कुराहटों के
जवाब देंहटाएंआवाजें गुम शोर है फुसफुसाहटों के
हर कोई चाहता है समझना मायेने मुस्कुराहटों के
मगर तल्ख़ है तबियत और
तंग है गलियारे व दरवाजे
अक्ल के आशियाने के
यार बहर वज़न का पता नहीं पर ये शेर मुझे बेहद अपीलिंग लगा
जवाब देंहटाएंये कैसी दौड़ है कि बच्चों की
पीठ पर बोझ है कुली की तरह
बधाई
शक्ल-सूरत तो थी उसी की तरह
जवाब देंहटाएंये कोई और था उसी की तरह
वाह....वाह......!!
इनके वादे समझना ज़रा सलीके से
आये हैं जो सावन में बैरी पी की तरह
ओये होए ......!!
साहिल जी बहुत खूब .....!!