गुरुवार, 2 जून 2011

सुनहरे संगीत पर थिरकता हिंदुस्तान


कुछ अरसा पहले एक कॉमेडी शो में जब ये बतौर अतिथि जज आए थे, तब एक प्रतियोगी ने इन पर जो कमेंट किया था, वो कुछ यूं था, 'इतने सुर भरे पड़े हैं कि एसिडिटी भी हो जाए तो दो-तीन कंपोजिशन वैसे ही बाहर निकल आएंगी।' शो चूंकि कॉमेडी का था तो तारीफ भी कुछ उसी अंदाज में की गई, लेकिन यह बात गलत नहीं है कि उनके भीतर सचमुच सुर कुछ इस तरह भरे पड़े हैं कि आज भी हिंदुस्तान उनकी धुनों पर नाचता है और अपने प्यार का इजहार करता है। दर्शकों, श्रोताओं के बीच चलती फिरती सोने की तिजोरी जैसे संबोधन पा चुके अपनी अलग ही स्टाइल के लिए मशहूर आलोकेश उर्फ बप्पी लहरी का जन्म 27 नवंबर 1952 को संगीत की धरती कोलकाता में हुआ। एक तो संगीत की धरती और दूसरी ओर संगीतमय परिवार के माहौल ने बप्पी के बाल मन में ही संगीत का बीज बो दिया था। उनके पिता अपरेश लहरी बंगाल के प्रख्यात गायकों में शुमार किए जाते थे, तो उनकी मां बंसरी लहरी शास्त्रीय संगीत और श्याम संगीत की संगीतज्ञ और गायिका के रूप में जानी जाती थीं। 

बाल मन में संगीत का बीज कुछ ऐसे प्रस्फुटित हुआ कि मात्र तीन साल की उम्र में बप्पी ने तबला बजाना शुरू कर दिया था। यहीं से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त करने के उस सपने ने आंखें मलनी शुरू कीं, जिसे बप्पी लहरी कब का पूरा कर चुके हैं। बंगाली रंगमंच से शुरुआत करने वाले बप्पी लहरी की संगीत प्रतिभा कितनी अद्भुत रही होगी इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 19 साल की उम्र में बप्पी फिल्मों के संगीत निर्देशक बन चुके थे। बंगाली फिल्म 'दादू' (1972) वह फिल्म थी, जिसने बप्पी को बतौर संगीत निर्देशक लोगों के सामने पहुंचाया। इसके बाद बप्पी ने मुंबई और सफलता की राह पकड़ी, जिस पर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 'नन्हा शिकारी' (1973) बतौर संगीत निर्देशक बप्पी की पहली हिंदी फिल्म थी, और 1975 में आई जख्मी से वे बतौर गायक-संगीतकार के रूप में पहचाने जाने लगे। इस फिल्म में मोहम्मद रफी और किशोर कुमार जैसे दिग्गज गायकों के साथ उन्होंने 'नथिंग इस इंपॉसिबल' गीत गाया। 70 से 90 के दशक के दौरान बप्पी लहरी इंडियन डिस्को म्युजिक के पर्याय बन चुके थे। मिथुन चक्रवर्ती के साथ उनकी फिल्म डिस्को डांसर के गीत 'आई एम अ डिस्को डांसर' पर आज भी लोग थिरकते हैं। डिस्को किंग कहे जाने वाले इस संगीतकार ने डिस्को म्युजिक को भारतीय खुशबू के साथ प्रस्तुत करने का अनूठा काम किया साथ ही विजय बेनेडिक्ट, शेरोन प्रभाकर, अलीशा चिनॉय जैसे गायकों को इंडस्ट्री के रूबरू कराया। वहीं ऊषा उथुप, आशा भोंसले और किशोर कुमार से भी डिस्को सांग गवाए।

1972 से लेकर अब तक के अपने संगीत से बप्पी लहरी ने न केवल श्रोताओं को थिरकने के लिए मजबूर किया है, बल्कि ऐसे गीत भी दिए हैं जो आज भी प्रेम की गहरी संवेदनाओं को प्रकट करने में श्रोताओं के दिल के बहुत करीब हैं। 'चलते-चलते मेरे ये गीत याद रखना', 'किसी नजर को तेरा इंतजार आज भी है', 'मंजिलें अपनी जगह हैं, रास्ते अपनी जगह', 'प्यार मांगा है तुम्हीं से', 'दिल में हो तुम आंखों में तुम', 'मुस्कुराता हुआ, दिल जलाता हुआ मेरा प्यार', 'प्यार कभी कम नहीं करना', 'याद आ रहा है तेरा प्यार', 'तू मुझे जान से भी प्यारा है', जैसे यादगार गीत देने वाले बप्पी पर दूसरे संगीतकारों का संगीत बिना उन्हें कोई रॉयल्टी या क्रेडिट दिए उपयोग करने का भी आरोप लगा। लेकिन 'बंबई से आया मेरा दोस्त, दोस्त को सलाम करो' कहने वाले बप्पी को आरोप लगाने वाले सलाम कर वापस चले गए। गोरी कलाइयों पर हरी-हरी चूड़ियों का जिक्र करने से लेकर सांवली-सलोनी की झील सी आंखों में दिल खोने के सफर में बप्पी लहरी के संगीत के समंदर की रवानगी में कहीं कमी नजर नहीं आती। तभी तो विशाल-शेखर जैसे संगीतकार उनके साथ टैक्सी नं. 9211 में बैठकर बंबई नगरिया का सफर करते हैं और ए आर रहमान जैसे महारथी उनके साथ एक लो एक मुफ्त वाला गुरु का फलसफा सिखाते हैं।

(25 मार्च 2011 को दैनिक जनवाणी, मेरठ में प्रकाशित)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें