सोमवार, 30 मार्च 2009

मेरी रगों के लहू से

धोखा हुआ है आपको में एक इंसान हूँ
इस जगह कभी उस जगह फेंका हुआ सामान हूँ

जाति धर्म ऊँच नीच और सियासी ढंग में
जाने कितनी पीढियों से बंटता हुआ सामान हूँ

मेरे हाथों की जुम्बिश से बना जो रूप पत्थर का
वो स्वर्ग का है देवता मैं आज भी वीरान हूँ

मेरी ही तामीर थी जो अब उस इमारत में
गिरती अपने हाथ पर शमशीर से हैरान हूँ

मेरी रगों के लहू से है जिनके घर में रौशनी
उनके लिए मैं बेवजह बे-ईमां बेजान हूँ.

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