आसान नहीं होता कि आपके कमीनेपन के अभिनय को देखकर लोग आपको सचमुच कमीना ही मानने लग जाएं। पर उन्होंने ऐसा कर दिखाया। मुझे याद है बचपने में जब टीवी पर उनकी कोई फिल्म देख रहा होता था, तो उनकी एंट्री होते ही दर्शक कहते थे- ‘आ गया गद्दार, जरूर कोई कमीनगी करेगा।’ (मेरे गांव में विलेन को गद्दार ही कहा जाता है।)
फिल्म गुड्डी का एक दृश्य याद आता है जब धर्मेंद्र उनकी कलाई घड़ी की तारीफ़ करते हैं और वे अपने अपने हाथ से निकाल कर वह घड़ी धर्मेंद्र को भेंट कर देते हैं। इस पर गुड्डी यानी जया भादुड़ी धर्मेंद्र को कहती हैं कि - ‘इसमें ज़रूर इनकी कोई चाल होगी, ये बहुत बुरे आदमी हैं।’ (ठीक-ठीक डायलॉग तो याद नहीं पर भाव यही था।) फिल्म में जया धर्मेंद्र की जबरदस्त फैन दिखाई गई हैं और यह दृश्य तब का है जब वे फिल्म की शूटिंग देखने जाती हैं।
‘गुड्डी’ में एक दर्शक के रूप में जया भादुड़ी का नज़रिया और मेरे गांव के दर्शकों की प्रतिक्रया एक ही भाव लिए है। इसे उनके अभिनय की तारीफ़ ही माना जाना चाहिए। वरना क्या यह संभव है कि बेहद ख़ूबसूरत शक्लोसूरत, शानदार कद-काठी और बेहतरीन आवाज़ वाले शख़्स को परदे पर देख लोग एक अलग से ख़ौफ़ व अनिष्ट की आशंका से भर जाएं और फिल्मों को असली ज़िंदगी की तरह देखने वाले उन्हें निजी ज़िन्दगी में भी बुरा ही समझने लगें।
बेशक वे अपने द्वारा निभाए गए कई दूसरे चरित्रों जैसे कि मलंग चाचा, शेरखान, जसजीत, अमरनाथ कपूर आदि के लिए भी याद किए जाएंगे लेकिन खलनायकी के किरदार सब पर भारी ही पड़ेंगे। हिन्दी सिनेमा में संभवतः वह पहले खलनायक रहे जिनके प्रशंसकों की संख्या ने नायकों की फैनफाॅलोइंग को टक्कर दी। उनके अभिनय की बानगी क्या रही इसके बारे में इससे ज्यादा क्या कहा जाए कि बाद के दौर में आए कई खलनायकों ने उनका कमीनापन उधार तो लिया, पर उनके जितने कमीने न बन सके।
यकीनन प्राण कृष्ण सिकंद जैसे ‘गद्दार’ का ‘कमीनेपन’ से भरा अभिनय याद आता रहेगा।
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