यह बस सीधे वैसा है, जैसा उपजा, बिना किसी काट-छांट के -
गज़ब की भीड़ है, शोर है, रफ़्तार है
जिसे भी देखिये वो थोडा सा बेज़ार है
जब भी बेची अपनी मेहनत बैठकर रोया
हर बार ही घाटा है क्या व्यापार है
रोज़ ही होते हैं वादे बेहतरी के बेशुमार
रोज़ लगता कल ही का तो अखबार है
जब लुट चुकीं उम्मीदें सारी उसके जीने की
फिर है चर्चा ख़ुदकुशी का गुनाहगार है
दोस्ती इतनी न जताओ कि कहना पड़े
दोस्त तो अच्छा है, थोडा सा बीमार है
मैं अपनी भूख से शर्मिंदा क्यों लगती है मुझे
क्या नहीं जानती कि इसका भी बाज़ार है
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