सोमवार, 3 जून 2013

एक दामाद का दुःख

जकल सुबह बड़ी देर तक सोता हूँ। ऐसे में अगर सुबह-सुबह कोई फ़ोन आ जाए तो बड़ी झल्लाहट होती है। मित्रों से कह भी रखा है कि भई सुबह-सुबह फोन मत करना। पर लल्लन मियाँ को कौन रोक सकता है, वे कभी भी फोन खड़का देते हैं। आज भी वे असमय बरास्ता फोन प्रकट हुए और प्रकट होते ही हमेशा की तरह सवाल फेंका- ‘तुमने शादी कर ली?’ 

झल्लाहट तो बड़ी हुई, सुबह-सुबह ही लल्लन मियाँ यह क्या राग अलापने लगे। मैंने कहा- ‘क्या लल्लन मियाँ आप भी! भई रात दो बजे ही तो आपने बात की थी, तब तक मैं अविवाहित था, इतनी जल्दी विवाहित कैसे हो जाऊँगा?’

लल्लन मियाँ के जवाब ने बता दिया कि वे लखनऊ वाया सहारनपुर के रास्ते पर हैं। बोले- ‘भई जब चंद घंटों में किसी का दामाद ‘पॉपुलर’ हो सकता है, तो यह भी हो सकता है। वैसे इस वक्त हमें अपने पिताजी पर बड़ा गुस्सा आ रहा है। और हमें ही क्या दुनियाभर के मिडल क्लास दामादों को अपने पिताजी पर गुस्सा आ रहा होगा।’

आँखों में नींद भरी थी लेकिन न पूछना बेअदबी कहलाता सो मैंने पूछ लिया- ‘किस बात का गुस्सा?’

‘अब क्या बताएँ, उन्होंने हमारा ‘उज्ज्वल भविष्य’ जो चौपट कर दिया। सिर्फ यह देखकर कि लड़की सुशील है, पढ़ी-लिखी है, पिताजी ने हमारी शादी करा दी। यह देखा ही नहीं कि ससुर किसी ‘लायक’ हैं या नहीं। अगर हमारे ससुर साहब किसी कबड्डी कमेटी के भी अध्यक्ष होते तो हम भी मय्यप्पन की तरह पॉपुलर न हो गए होते।’

‘लेकिन मय्यप्पन इसलिए थोड़े ही पॉपुलर हुए हैं कि श्रीनिवासन के दामाद हैं, फिक्सिंग की वजह से हुए हैं। और फिर वह फिल्मजगत से ताल्लुक रखते परिवार का चश्मोचिराग है, उसकी अपनी हैसियत है इसलिए अध्यक्ष जी का दामाद है।’

‘अमाँ छोड़ो हैसियत की बात। इंटरनेट से ढ़ूँढ़-ढाँढ़कर पता कर लिया होगा कि फिल्मजगती परिवार के चश्मोचिराग हैं, वरना ख़बरें देखने वालों को अब भी कहाँ पता है। और भाई क्या इतनी बड़ी आग लगा पाता वो केवल फिल्मजगती परिवार की आँख और दीपक होकर। फिक्सिंग भला क्यों कर पाता जो अध्यक्ष जी का दामाद न होता?’

‘वो तो इसलिए कि वह ख़ुद एक टीम का सीईओ है।’

‘वो भी क्यों है, क्योंकि अध्यक्ष जी की बेटी उस टीम के मालिकान में से एक है। इसीलिए तो हमें गुस्सा है। अगर हमारे ससुर भी किसी खेल कमेटी के अध्यक्ष होते तो बीवी की मार्फ़त हम भी तो कुछ न कुछ होते। फिर दिखाते मीडिया को कि एक अकेला वही होनहार दामाद नहीं है। उसे ‘अपोर्चुनिटी’ मिली, हमें नहीं मिली तो इसमें हमारा क्या दोष? पर नहीं सबको तो केवल एक वही दामाद नज़र आ रहा है, हम सब तो जैसे निखट्टू हैं। देखते ही नहीं कि सुबह पानी की लाइन, बच्चे के स्कूल एडमिशन, रेड लाइट क्रासिंग, नौकरी की लाइन और न जाने कहाँ-कहाँ हम भी कितनी तरह की फिक्सिंग करते हैं।’

‘लेकिन दामाद की करनी तो देखिए, बेचारे ससुर जी को अध्यक्ष पद से अलग होना पड़ा। संगी-साथियों ने ही उन पर दबाव बनाने के लिए अपना इस्तीफा तक दे दिया था।’

‘महान बनने के लिए कुछ तो छोड़ना ही पड़ता है बंधु। उनका बयान देखो- किसी ने इस्तीफा नहीं माँगा, खुद ही अलग हो गए पद से। दामाद की करनी ने उन्हें महान बनने का मौका दे दिया भई। और मूरख हैं संगी-साथी। अरे भई जब कप्तान चुप है, जिस टीम का सीईओ है उसके मालिकान चुप हैं, ससुर जी का कुछ बिगड़ नहीं रहा, तो ये काहे झमेला कर रहे हैं। इसीलिए कहता हूँ भाई जो अपोर्चुनिटी हमारे पिताजी की वजह से हमें नहीं मिली, उसे तुम मत खो देना। शादी के लिए लड़की ढ़ूँढने के चक्कर में मत पड़ना, बस एक ‘लायक ससुर’ ढ़ूँढो, तुम भी पॉपुलर बनो और हम जैसे दामादों की पीड़ा का निवारण करो।’

‘यानी पॉपुलर होने के लिए घपला करूँ। क्या उल्टी राय दे रहे हैं!’

‘तो क्या तुम यह समझ रहे हो कि कलम घसीट-घसीट कर इतने पॉपुलर हो जाओगे कि अदालत तुम्हें शादी करने के लिए छोड़ देगी। तुम क्या कोई क्रिकेट स्टार हो! तुम्हारे भले के लिए हमें जो कहना था कह दिया, आगे तुम्हारी मर्जी।’

लल्लन मियाँ फोन पटक चुके थे। मैं सोचने लगा था निगेटिव चीजें भी कमाल ‘पॉपुलैरिटी’ देती हैं।

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