चंद लम्हे असास रखे थे
रंज कुछ अपने पास रखे थे
तज़रिबे होते नहीं सब मीठे
हमने नमकीन ख़ास चखे थे
आसमां में दिखे थे कुछ बादल
ख़ाली बर्तन भी पास रखे थे
एक कमरे का मकाँ था जिसमें
सारी दुनिया के ख़्वाब रखे थे
मिल गए माज़ी के बक्से में
कितने उधड़े लिबास रखे थे
ख़ुद पे उतरेगा कहाँ जाना था
जाने कब से ये ताब रखे थे
एक ख़ामोश ग़ज़ल सा था वो
क़ैद जिसके मजाज़ रखे थे
वक़्त बदला तो नहीं है यूँ ही
हमने कुछ नगमे साज़ रखे थे
जब सुलगते थे धुआँ उठता था
शोले फ़ितरत में आब रखे थे
रोज़-ए-अव्वल ही से दुनिया में
प्यार पे सख्त पास रखे थे
पारा-पारा ही मिले हैं अक्सर
कल के हिस्से में आज रखे थे
अहद का नफ़ा-ज़ियाँ क्या है
हमने कब ये हिसाब रखे थे
कच्ची मिट्टी से मकाँ ऊँचे तक
सबके अपने अज़ाब रखे थे
चलो तामीर पूरी करते हैं
कुछ अधूरे से ख़्वाब रखे थे।
असास: बुनियाद /नींव, माज़ी: इतिहास, ताब: गुस्सा, मजाज़: कानूनी रूप से स्वीकृत बात, आब: पानी,
रोज़-ए-अव्वल: पहला दिन, पास: कब्जा, पारा-पारा: खंड-खंड /टुकड़े-टुकड़े, अहद: वादा, नफ़ा-जियां: लाभ-हानि, अज़ाब: मुश्किलें।
वाह बहुत सुंदर भावभिव्यक्ति... http://aapki-pasand.blogspot.co.uk/2013/06/blog-post_11.html
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति . आभार जो बोया वही काट रहे आडवानी आप भी दें अपना मत सूरज पंचोली दंड के भागी .नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
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